बिना “कुछ लिए दिए” जनता का कोई काम नहीं करते यह सचिव साहब
जनता के काम के बदले झोला देकर शपथ दिलाते हैं अजीत प्रताप सिंह
मुकेश कुमार (एडिटर क्राइम व सह प्रभारी उत्तर प्रदेश) TV9 भारत समाचार (बाराबंकी)। जैसा कि एक पुरानी अवधारणा है कि सरकारी महकमों में जन सामान्य को अपने काम करवाने के लिए संबंधित अधिकारी कर्मचारियों से कुछ न कुछ लेनदेन करना पड़ता है, तब जाकर कहीं काम हो पाता है। कभी-कभी इसके अभाव में तमाम लोग अपनी जरूरी कामों को लेकर बरसो भटकते रहते हैं। इसी प्रकार का एक अलग ही नजारा इस संवाददाता को विकासखंड बंकी में देखने को मिला। यहां नियुक्त ग्राम विकास अधिकारी अजीत प्रताप सिंह अपने कार्य क्षेत्र के एक व्यक्ति से उसके काम के बदले कुछ लेनदेन की बात करते हुए मिले और इस संवाददाता को देखकर भी कोई संकोच नहीं किया। कुछ देर के मोलभाव के बाद जब वह व्यक्ति एक निश्चित लेनदेन के लिए राजी हुआ, तभी उसका काम हो पाया। इसके बाद इस संवाददाता के सामने ही इन सचिव साहब ने अपनी अलमारी खोलकर एक कपड़े से बने झोले को उस ग्रामीण को देते हुए एक वादा लिया और शपथ दिला कर भविष्य में कभी भी सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग न करने की बात कही और तो और इस प्राण को कम से कम 10 लोगों को दिलवाने की बात कही। इसके बाद हंसते हुए अजीत प्रताप सिंह ने पूरे लेनदेन का खुलासा करते हुए बताया यह लेनदेन उन्होंने अपने सरकारी सेवा की कार्यप्रणाली में कई वर्षों से शामिल कर रखा है। पर्यावरण संरक्षण के कार्य को वे अपनी सरकारी सेवा के साथ और उसके बाद भी लगभग 20 वर्षों से करते आ रहे हैं। और अब तक अपने जनपद सहित पूरे देश के लगभग 16000 लोगों को कपड़े से बने, इकोफ्रेंडली कपड़े के झोले उन्हें यही शपथ दिलाकर भेंट कर चुके हैं। इस प्रकार ये अब तक लगभग 2लाख लोगों को अपनी धरती बचाओ अभियान से जुड़ चुके हैं। यह श्रंखला दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है।
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अजीत प्रताप सिंह कहते हैं कि यही उनके जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। इनके अन्य गतिविधियों में वृक्षारोपण, जल संरक्षण, वायु और ध्वनि प्रदूषण के विरुद्ध अभियान प्रमुख है और सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब वह अपने व्यस्ततम सरकारी नौकरी को कुशलता से संपन्न करते हुए साथ-साथ ड्यूटी के बाद भी करते हैं। इसमें इन्हें अपने उच्च अधिकारियों से प्रोत्साहन और प्रशंसा भी मिलती हैं। इस अभियान पर आने वाला खर्च यह अपने निजी खर्चों में कटौती करते हुए बिना किसी से कोई सहयोग लिए अपने वेतन से करते हैं। जो इन के वेतन का लगभग 10 से 15% प्रतिमाह होता है। प्रदूषण नियंत्रण के प्रति उनके जुनून का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है। कि इनके जीवन के बाद भी इनके शरीर को पर्यावरण को कोई जरा भी नुकसान नहीं पहुंचेगा और इनका शरीर बाद में भी मानवता के काम आएगा। इसलिए उन्होंने बहुत पहले ही अपने शरीर को लखनऊ को राम मनोहर लोहिया संस्थान को दान कर रखा है। इनकी कार, मोटरसाइकिल की डिग्गी कपड़े के झोले और इको फ्रेंडली उपभोक्ता वस्तु से भरी रहती है। और इनके पास कपड़े का झोला अनिवार्य रूप से मौजूद रहता है। जिसे यह आकस्मिक समय मे जरुरत ना पड़ जाए उस समय उपयोग करते हैं। इन्होंने अपनी कार व मोटरसाइकिल कभी भी पानी से नहीं धोए, फिर भी कॉलोनी गांव की सबसे साफ कार कहलाती है। इससे यह हमेशा सूखे और फिर गीले कपड़े से रोजाना कसरत करते हुए साफ करते हैं।
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