कबीर जयंती पर गूंजा ‘मौकों कहां ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में’

साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'संकल्प' के मिश्र नेवरी स्थित कार्यालय पर हुआ कार्यक्रम

बलिया। कबीरदास जी न सिर्फ एक संत थे, बल्कि वे विचारक और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए दोहे और कविताओं की रचना की। कबीरदास जी हिंदी साहित्य के ऐसे कवि थे, जिन्होंने समाज में फैले आडंबरों को अपनी लेखनी के जरिए उस पर कुठाराघात किया था। उक्त बातें कबीर जयंती के अवसर पर बतौर मुख्य वक्ता पंडित ब्रजकिशोर त्रिवेदी ‘अनुभव दास’ ने कही।

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साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था ‘संकल्प’ के मिश्र नेवरी स्थित कार्यालय पर आयोजित कबीर दास की 625वीं जयंती पर ‘अनुभव दास’ ने कहा कि संत कबीरदास जी ने आजीवन समाज में फैली बुराइयों और अंधविश्वास की निंदा करते रहे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से जीवन जीने की कई सीख दी हैं। कबीर जैसा आध्यात्मिक संत इस धरती पर कोई दूसरा नहीं हुआ।
शिव‌जी वर्मा ने कहा कि वर्तमान समय में कबीर पहले से ज्यादा प्रासंगिक हो गये हैं।

समाज को जोड़ने की बात करने वाले को कबीर से सीख लेने की जरूरत है। शोभा ठाकुर ने कहा कि जब जब इस धरती पर इंसानियत कि बात होगी, कबीर हमारे मार्गदर्शक बनकर खड़े रहेंगे। वरिष्ठ रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी ने कहा कि समाज में प्रेम, आपसी भाईचारा, सौहार्द की दीवारें परत दर परत गिरती जा रही हैं, ऐसे में एक मात्र कबीर हैं जो हमारा मार्ग प्रशस्त कर समाज की बेहतरी का रास्ता दिखा सकते हैं।

इस अवसर पर संकल्प के रंगकर्मियों ने उनके भजनों “कवन ठगवा नगरिया लूटल हो” और “मौकों कहां ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में” गाकर सुनाया। इस अवसर पर सुशील, संजय, विवेक सिंह, आनन्द कुमार चौहान, अनुपम पाण्डेय, राहुल चौरसिया, सोनी पाण्डेय, अरविंद गुप्ता, अखिलेश मौर्य, ज्योति इत्यादि उपस्थित रहीं। कार्यक्रम का संचालन अनुपम पाण्डेय ने किया।
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