ईटभट्ठठों पर काम करने वाले आदिवासी मजदूरों का श्रम विभाग में कोई लेखा-जोखा नहीं

16 से 18 घंटे कार्य करने को विवश शिक्षा से इनके परिवार के बच्चे वंचित लालन-पालन भरण पोषण की अव्यवस्था के चलते प्रायः कुपोषण के शिकार

कृष्णा यादव,तमकुही राज/ कुशीनगर। जनपद में विभिन्न संचालित ईट भट्टों पर बिहार,झारखंड आदि प्रांतों से आकर आदिवासी मजदूर गरीब मजदूरी के नाम पर 16 से 18 घंटे कार्य करने को विवश है। श्रम विभाग के पास ऐसे मजदूरों का कोई लेखा-जोखा नहीं है। मनमाने तौर पर ईट भट्ठा के मालिक बधुआ मजदूर के रुप में इनसे कार्य कराते हैं।

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गुजारा करने के नाम पर भठ्ठों पर झोपड़ी में भेड़ बकरियों की तरह गुजारा करते कठिन परिश्रम कर अपने परिवार का भरण पोषण के लिए मेहनत मजदूरी करते रहते हैं इनके स्वास्थ्य की चिंता तथा इनके बच्चों के पढ़ाई लिखाई शिक्षा व्यवस्था की चिंता किसी सरकारी विभाग को नहीं है और नहीं इनका कोई लेखा-जोखा भी नही है ।स्वच्छता अभियान के अंतर्गत एक खिंचवा हैंडपंप से पानी पीने को मजबूर है सफाई के नाम पर यह साबुन सर्फ के लिए भी मोहताज हैं। विडंबना है कि यह गरीब मिलो कोस दूर घर छोड़कर कार्य करने उत्तर प्रदेश की सीमा में आते हैं जहां पर कठिन परिश्रम के बाद भी कुपोषण के शिकार हैं जिनका नाजायज लाभ लेते हुए भट्ठा मालिक भी इनकी श्रम का दुरुपयोग करते हैं।

बीमार पड़ने के बाद शहरों में स्थापित सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर आने जाने में मशक्कत उठाते हुए दवा इलाज के नाम पर जाते हैं परंतु वहां भी इनको सम्मान नहीं मिलता है सरकारी डॉक्टर दवा की पर्ची लिखकर हाथों में थमा देते हैं मजबूरन इनको प्राइवेट दवा की दुकानों से महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ती है। काशः यह कभी-कभी दवा के अभाव में दम भी तोड़ देते हैं। मरने के बाद इनके शव को भट्ठा मालिक घर न भिजवा करके भट्टे के अगल-बगल में अंतिम क्रिया करवा देते हैं।

बंधुआ मजदूर की तरह कार्य करने को विवश सरकार की तरफ से कोई सुविधा मुवसर नहीं

इनके बच्चों को पढ़ने के लिए कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है। लालन-पालन के अभाव में स्वच्छता अभियान के अभिशाप के रूप में नौनिहाल बच्चे मिट्टी पर सोकर धरती माता को ही अपना बसेरा बनाए हुए हैं। श्रम विभाग भी मौन धारण करके ऐसे परिवारों के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखा पाती है। जिससे समाज के वंचित गरीब यह समाज कुपोषण का शिकार हो रहा है तथा पहले भी शिक्षा से वंचित रहा है और आज भी शिक्षा से वंचित होता चला जा रहा है।

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