व्हाट्सएप पर ना भेजें प्री-अरेस्ट वारंट, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को क्यों दिया ऐसा निर्देश?

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रानिक माध्यमों से भेजी गई नोटिस BNSS 2023 के तय मानकों को पूरा नहीं करती है‌। लूथरा ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए फैसले की नजीर दी। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने पुलिस को बिना सीआरपीसी के क्षेत्र 41(a) का पालन किए, एक शख्स को गिरफ़्तार करने से रोक दिया था।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ )TV 9 भारत समाचार नई दिल्ली। 

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को एक खास निर्देश दिया है। इसके तहत कुछ धाराओं में व्हाट्सएप पर प्री-अरेस्ट वारंट भेजने से मना कर दिय गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 41(a) और सेक्शन 35 के तहत संज्ञेय अपराध के किसी भी आरोपी को व्हाट्सएप या किसी भी अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्री- अरेस्ट नोटिस नहीं भेजी जाएं। 

बीएन एन एस की दोनों धाराओं में प्रावधान है कि मामले में जांच अधिकारी पहले आरोपी के ख़िलाफ़ हाज़िर होने का नोटिस जारी करेगा। अगर वह पुलिस अधिकारी के सामने हाज़िर होकर जांच में सहयोग करता है तो उसे गिरफ़्तार नहीं किया जाएंगा।

गौरतलब है कि विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया था कि पुलिस बिना सेक्शन 41(a) में नोटिस जारी किए लोगों को गिरफ़्तार करके अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रही है। अदालत मित्र सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा के सुझाव को स्वीकार करते हुए जस्टिस एम.एम. सुंद्रेश और राजेश बिंदल की बेंच ने आदेश दिया है।

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इसमें कहा गया है कि सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अपनी पुलिस मशीनरी को आदेश दें कि केवल बीएनएसएस 2023 के तय मानकों के हिसाब से ही नोटिस जारी की जाएं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भेजी गई नोटिस बीएनएसएस  2023 के तय मानकों को पूरा नहीं करती है। लूथरा ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए फैसले की नजीर दी। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने पुलिस को बिना सीआरपीसी के सेक्शन 41(a) का पालन किए एक शख्स को गिरफ़्तार करने से रोक दिया था।

इस व्यक्ति ने ऐसा जुर्म किया था कि जिसमें उसे 7 साल तक की सज़ा हो सकती थी। इसी तरह बेल बॉन्ड ना भर पाने के चलते सज़ा पूरी होने के बावजूद जेल में बंद गरीब अंंडरट्रायल्स कैदियों को लेकर भी अदालत मित्र ने कोर्ट को जानकारी दी।

इसके मुताबिक, नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी इस बात पर सहमत है कि ऐसे कैदियों को उनके वेरीफाइड आधार कार्ड और निजी मुचलका जाम करने पर छोड़ दिया जाएं। हालांकि, अभी इस बारे में प्रक्रिया तय नहीं हुई है। इस पर शीर्ष अदालत ने कोर्ट मित्र को नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी से चर्चा करके इस बाबत रास्ता तैयार करने के लिए कहा हैं।

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