ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में नए तौर-तरीके से सट्टेबाजी, सरकार को क्यों नहीं दिखता यह गंदा कारोबार।
उत्तर प्रदेश के झांसी में नर्सिंग की एक छात्रा ने सट्टे में बड़ी रकम गवाने के बाद जो किया, वह कोई अकेली घटना नहीं है। कुछ महीने पहले अलीगढ़ में भी एक लड़के ने ऐसी सट्टे बाजी में हजारों रुपए बर्बाद करने के बाद अपने अपहरण की झूठी कहानी रचा दी थी। झांसी में टोडी फतेहपुर की छात्रा ने भी दोस्तों के साथ मिलकर वही कहानी दोहराई और अपने ही परिजनों से ₹6 लाख रुपए की फिरौती मांगी।
मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ) TV 9 भारत समाचार …..उत्तर प्रदेश……
सट्टेबाजी गैरकानूनी होने के बावजूद चोरी – छिपे या खुलेआम बड़ी-बड़ी हस्तियों ने विज्ञापन देकर युवाओं को भ्रमित किया हुआ हैं। आज ऑनलाइन जुआ युवाओं की पसंद बना हुआ है, और ज़बरदस्त तरीके से खेला जा रहा है। जबकि कुछ मशहूर खिलाड़ी और जानी-मानी हस्तियां ने ‘गेमिंग ऐप’ का जिस तरह भ्रमित कर देने वाला प्रचार किया है उसके बुरे नतीजे साफ़ देखने शुरू हो गए हैं।
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ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में नए तौर -तरीके से सट्टेबाजी हो रही है और शिकार हो रहे हैं किशोर और युवा। ऑनलाइन गेम की लत उन्हें इस नए जुए के जाल में फंसा रही हैं।
उत्तर प्रदेश के झांसी की एक छात्रा ने सट्टे में बड़ी रकम गवाने के बाद जो किया, वह कोई अकेली घटना नहीं है। कुछ महीने पहले अलीगढ़ में भी एक लड़के ने ऐसे सट्टेबाजी में हजारों रुपए बर्बाद करनेेेे के बाद अपनेेेेेेेेेेेेेे ही अपहरण की झूठी कहानी रची थी। झांसी में टोडी फतेहपुर की छात्रा ने भी अपनेेेे दोस्तों के साथ मिलकर वहीं कहानी दोहराई और अपने ही परिजनों से ₹6 लाख की फिरौती मांगी।
दरअसल, आजकल ऑनलाइन सट्टेबाजी का चस्का जिस तरह लोगों को लगा है, वह कहीं भारतीय परिवारों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। झांसी का मामला ऐसी घटनाओं की एक कड़ी भर है। ऐसे हजारों युवा होंगे जो रोज़ लाखों रुपए गवा रहे होंगे। जिन पर किसी की नज़र नहीं जा पाती होगी। सवाल यह है कि किसी तरह की सट्टेबाजी गैर कानूनी होने के बावजूद चोरी – छिपे या खुलेआम विज्ञापन देकर युवाओं को अगर जुए की लत में फंसाया जा रहा है तो इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है?
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ऑनलाइन गेमिंग के नाम पर चल रहे इस खेल को कौन बढ़ावा दे रहा हैं? और इसके नतीजे क्या आ रहे हैं? यह कानून के नज़र में अवश्य होना चाहिए!
पिछले कुछ समय से कहीं ‘बैटिंग ऐप्स’ और वेबसाइटों पर खुलेआम सट्टेबाजी हो रही है। पहली बार कोई सट्टा जीतता है तो फिर उसके बाद उसके लिए एक दलदल तैयार हो जाता हैं। जिसमें घुसने के बाद वह निकल नहीं पाता है। शुरू में कमाई हुई, फिर कब सारी पूंजी लुट गई, इसका एहसास तब होता है जब पीड़ित को यह पता चलता है कि दोस्तों से क़र्ज़ लिए हुए रुपए भी डूब गए हैं। यह भी संभव है कि सट्टेबाजी कराने वाली कंपनियां युवाओं की मनोस्थिति भांप कर उनको जाल में फंसाती हो। इस तरह के खेल में उलझना एक आंधी सुरंग में भटक जाने की तरह है। इसमें फंसने वाले युवाओं और किशोरों को बचाने की जरूरत हैं।