मियां-तियां या पाकिस्तानी कहना अपराध नहीं, सुप्रीम कोर्ट।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, एफआईआर का हवाला देते हुए पिटने कहा है कि हमें नहीं लगता है कि अपीलकर्ता के ख़िलाफ़ आरोपित अपराधों का कोई भी महत्व उसके ख़िलाफ़ दर्ज़ एफआईआर में मौजूद है। मामले के अवलोकन से पता चलता है कि धारा 353, 298 और 504 आईपीसी के तहत अपीलकर्ता के ख़िलाफ़ लगाया गया अपराधों के आवश्यक तत्व सामने नहीं आए हैं।
मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ ) TV 9 भारत समाचार नई दिल्ली।
किसी को मियां-तियां या पाकिस्तानी कहना उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अपीलकर्ता हरिनंदन सिंह को धार्मिक भावना को आहत करने के आरोप से मुक्त करते हुए टिप्पणी की।
सर्वोच्च न्यायलय ने कहा है कि यह बयान गलत है लेकिन धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए बराबर नहीं है।
मामला झारखंड के चास अनुमंडल कार्यालय का है। एक उर्दू अनुवादक ने शिकायत दर्ज़ कराई थी। शिकायतकर्ता के अनुसार, वह सूचना के अधिकार आवेदन के बारे में जानकारी देने के लिए 18 नवंबर 2020 को आरोपी से मिलने गया, तो आरोपी ने उसके धर्म का हवाला देकर उसके साथ दुर्व्यवहार किया था। बोकारो सेक्टर 4 थाने में एफआईआर दर्ज़ की गई है।
यह भी पढ़ें – नगर निगम की लापरवाही से शादी में अड़चन, भागलपुर के वार्ड-47 में जलजमाव बना समस्या
ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 353, 298 और 504 के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया। अपीलकर्ता ने कार्य भाई को रद्द करने के लिए झारखंड उच्च न्यायालय का रुख किया। उच्च न्यायलय ने उनकी याचिका ख़ारिज कर दी।
सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कहा?…………..
एफआईआर का हवाला देते हुए पीठ ने कहा है कि हमें नहीं लगता है कि अपीलकर्ता के ख़िलाफ़ लगाए गए अपराधों के आवश्यक तत्व सामने नहीं आए हैं। अपीलकर्ता द्वारा धारा 353 आईपीसी को आकर्षित करने के लिए कोई हमला या बल का प्रयोग नहीं किया गया था। इसीलिए, उच्च न्यायालय को धारा 353 आईपीसी के तहत अपीलकर्ता को आरोप मुक्त कर देना चाहिए था।
अपीलकर्ता के ख़िलाफ़ धारा 353 के तहत आरोप बिल्कुल भी नहीं बनता है। आईपीसी की धारा 298, 504 के तहत अपराध समझौता योग्य अपराध नहीं है।
इसलिए, उन्होंने दलील दी है कि न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, बोकारो को उन्मोचन की मांग करने वाली अर्जी को स्वीकार कर लेना चाहिए था, और अपीलकर्ता के ख़िलाफ़ कार्यवाही बंद कर देनी चाहिए थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, इन परिस्थितियों में, हम उच्च न्यायलय के आदेश को रद्द करते हैं। जिसमें ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा गया था और परिणामस्वरूप, अपीलकर्ता द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार करते हैं और अपीलकर्ता को उसके ख़िलाफ़ आरोपित सभी तीन अपराधों से मुक्त करते हैं।
यह भी पढ़ें – नगर निगम की लापरवाही से शादी में अड़चन, भागलपुर के वार्ड-47 में जलजमाव बना समस्या