अपने प्रिय शिक्षक के तबादले से गुस्सा तिलकामांझी विश्वविद्यालय के छात्रों की आमरण भूख हड़ताल

छात्रों का कहना है कि उनके शिक्षक को साजिश के तहत फंसाकर तबादला किया गया है, जो शिक्षा के माहौल और पिछड़े वर्ग के छात्रों के भविष्य के लिए एक बड़ा झटका है

रिपोर्ट : अमित कुमार, भागलपुर
भागलपुर : बिहार। भागलपुर के तिलकामांझी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सामने इन दिनों एक अलग ही नज़ारा देखने को मिल रहा है। कई छात्र आमरण भूख हड़ताल पर बैठे हैं और उनकी सिर्फ एक ही मांग है कि उनके प्रिय शिक्षक, डॉ. दिव्यानंद, को वापस विश्वविद्यालय में नियुक्त किया जाए। छात्रों का कहना है कि उनके शिक्षक को साजिश के तहत फंसाकर तबादला किया गया है, जो शिक्षा के माहौल और पिछड़े वर्ग के छात्रों के भविष्य के लिए एक बड़ा झटका है।

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Angry with the transfer of his beloved teacher, the students of Tilakamanjhi University

हिंदी विभाग के छात्रों का कहना है कि डॉ. दिव्यानंद ने न केवल विभाग को एक नया जीवन दिया, बल्कि छात्रों में आत्मविश्वास जगाया और उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उनके तबादले से नाराज छात्रों का आरोप है कि यह एक सोची-समझी साजिश का नतीजा है, जिसे कुछ लोगों ने अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए अंजाम दिया है।

छात्रों का यह भी कहना है कि जो लोग समाजवाद और पिछड़े वर्ग के उत्थान की बातें करते हैं, वही लोग एक योग्य शिक्षक को बदनाम करने और तबादला कराने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सिर्फ एक शिक्षक का तबादला नहीं, बल्कि उन छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, जो आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं।

जांच समिति और विवादित ऑडियो

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस मामले की जांच के लिए कुलपति महोदय द्वारा गठित समिति के एक सदस्य का एक ऑडियो वायरल हुआ है। इस ऑडियो में वह किसी महिला से बात करते हुए यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने कुलपति से आरोपी शिक्षक का तबादला करने के लिए कह दिया है और विश्वविद्यालय में वही होता है जो वह चाहते हैं।

यह ऑडियो सामने आने के बाद छात्रों और शिक्षकों में आक्रोश और बढ़ गया है। सवाल उठ रहा है कि जब जांच समिति के सदस्य खुद इस तरह के बयान दे रहे हैं, तो निष्पक्ष जांच की उम्मीद कैसे की जा सकती है? क्या कुलपति महोदय किसी के दबाव में आकर निर्णय ले रहे हैं?

छात्रों की मांग: न्याय हो और शिक्षक की वापसी हो

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छात्रों की केवल एक मांग है : डॉ. दिव्यानंद को वापस हिंदी विभाग में नियुक्त किया जाए। वे कहते हैं कि उनका संघर्ष सिर्फ अपने शिक्षक के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और न्याय के लिए भी है।

अगर विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया और छात्रों की बात नहीं सुनी, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है। छात्रों ने साफ कहा है कि वे तब तक पीछे नहीं हटेंगे, जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होती।

यह मामला सिर्फ एक शिक्षक के तबादले का नहीं, बल्कि शिक्षा प्रणाली में हो रही साजिशों और राजनीतिक दखल का भी है। यदि योग्य और समर्पित शिक्षकों को इस तरह से निशाना बनाया जाएगा, तो शिक्षा का स्तर गिरना तय है। अब देखना यह होगा कि विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों की इस मांग को कैसे संबोधित करता है और क्या न्याय की जीत होती है या फिर राजनीति एक बार फिर शिक्षा पर हावी हो जाती है।

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